नशे का प्यार
नशे का प्यार
अरे सुनती हो राघव की मां, कहां हो भई, जल्दी यहां आओ – सुनील ने घर में घुसते ही जोर से आवाज लगाई।
क्या है जी, क्यों घर सर पर उठा रहे हो, रसोई में हूं, आपके लिए चाय का पानी चढ़ा दिया है, जानती हूं, वरना आते ही शोर मचाते, चाय ..... चाय.... शीला रसोई घर से ही जवाब देते हुए बोली।
अरे भाग्यवान, चाय वाय छोड़ो, यहां आओ देखो मैं हलवाई की दुकान से गर्मा गर्म जलेबी और समोसे लेकर आया हूं..... राघव..... बेटा राघव तुम भी आ जाओ.... सब लोग साथ बैठ कर खाते हैं..... सुनील उतावली आवाज में बोला।
जी पिताजी, अभी आया, जरा एक मैथ्स का सवाल हल कर लूं, बस 2 मिनट– अंदर से राघव की आवाज आई।
इधर शीला रसोई से निकल कर पल्लू से हाथ पोंछते हुए बाहर आई और शरारत भरी मुस्कान के साथ सुनील को छेड़ा, क्यों जी, आपकी कोई लॉटरी निकल आई है क्या जो महीने के आखिर में रईसी दिखा रहे हैं,वो बोली।
हां मेरी जान समझ लो लॉटरी ही लग गई है, सुनील ने उठ कर शीला को बाहों में जकड़ते हुए कहा।
चलो हटो, जवान बेटे ने देख लिया तो क्या कहेगा, तुमको तो जब देखो तब मस्ती सूझती रहती है, शीला ने शर्माते हुए खुद को सुनील की पकड़ से आजाद किया और बोली – अच्छा ये बताइए, हुआ क्या जो आप इतने खुश नजर आ रहे हैं?
बस समझ लो अपनी किस्मत खुल गई है, मुझे दिल्ली के एक बड़ी कंपनी में असिस्टेंट मैनेजर की नौकरी मिल गई है, और जानती हो तनख्वाह पूरे 50000 महीना, सुनील ने झूमते हुए बताया।
अरे वाह, ये तो सच में बहुत बड़ी खबर है, शीला ने मुस्कुराते हुए कहा।
अब हम राघव को दिल्ली के किसी शानदार कॉन्वेंट स्कूल में पढ़वा सकेंगे। उसे मेरी तरह यहां के सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ना पड़ेगा। हमारा होनहार बेटा बड़े इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ेगा, सुनील खुशी से झूमते हुए बोला।
पर पिताजी, मैं तो अब तक हिंदी मीडियम में ही पढ़ा हूं, कैसे कर पाऊंगा– राघव बोला, उसके चेहरे के हाव भाव उसके असमंजस को साफ दिखा रहे थे।
अरे, तो क्या हुआ, मैं तो हमेशा ही हिंदी मीडियम में पढ़ा बेटा पर देख आज अपनी लगन और मेहनत के बलबूते पर एक mnc कंपनी में करीब 50 लोगों को पछाड़ कर मैने मैनेजर की जॉब हासिल की है, और तू तो मेरा होनहार बच्चा है, बस शुरू में थोड़ी ज्यादा मेहनत करना सफलता खुद तुम्हारे कदम चूमेगी, सुनील अपने बेटे को समझाते हुए बोला।
अच्छा, वो सब छोड़ो पहले समोसे और जलेबी हो जाए, भई मुझे तो बड़ी भूख लगी है, सुनील मेज की तरफ लपकते हुए बोला।
आप लोग शुरू करो मैं चाय लेकर आती हूं, शीला झटपट रसोई की तरफ जाते हुए बोली।
जल्दी आना, वरना फिर न कहना हम सब चट कर गए, सुनील बोला।
हां .... हां बस 2 मिनट में आई, शीला किचन से ही बोली।
छोटे से शहर के पले बढ़े सुनील के लिए ये अवसर सच ही किसी लॉटरी जैसा ही था। उसका सपना था कि वो किसी बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में काम करे, बड़े शहर में रहे और खास कर उसका बेटा राघव अच्छे स्कूल से अच्छी शिक्षा प्राप्त करे ताकि भविष्य में उसे सुनील की तरह कठिनाइयों का सामना न करना पड़े।
एक छोटे किसान परिवार का बेटा था सुनील, पर उसने रात दिन मेहनत करके पढ़ाई की और फिर अपने ही जीवट और मेहनत के बल बूते पर तरक्की की। पर सुनील ने जाना की ग्रामीण परिवेश और छोटे शहर की उसकी परवरिश कहीं न कहीं उसकी उन्नति के रास्ते का कांटा साबित हुई, जिस वजह से काबिलियत होते हुए भी उसे सफलता के लिए इतना इंतजार करना पड़ा। इसलिए उसने तय कर लिया था कि जिन कठिन परिस्थितियों ने उसे बांधा वो कभी भी उसके बेटे की राह में नहीं आएंगी।
शीला, एक साधारण परिवार से आई सीधी साधी ग्रहणी, जिसके लिए पति का साथ और परिवार ही सब कुछ थे, वह बहुत खुश थी क्योंकि उसका पति खुश था। शीला केवल मेट्रिक पास पर गृह कार्य में निपुण और समर्पित महिला थी। उसका संसार तो अपने पति और पुत्र में ही सिमटा हुआ था।
राघव, 9वी क्लास में पढ़ने वाला होनहार, पर बेहद संवेदनशील और अंतर्मुखी लड़का, उसके लिए दिल्ली महानगर जाना जहां रोमांचक था वहीं मन में एक डर भी, वैसे ही उसके कम ही मित्र थे, पर अब दिल्ली जाना मतलब सारे संगी साथियों से बिछुड़ना।
पर माता पिता का सम्मान और उनकी आकांक्षाओं को पूरा करना तो हर पुत्र का कर्तव्य है, ऐसा उसके मां बाप ने ही तो सिखाया था, इसलिए वो चाह कर भी अपने पिता के सामने कुछ भी कहने में असमर्थ रहता।
अगले कुछ दिन बहुत व्यस्तता भरे थे, अगले ही हफ्ते सुनील ने गुरुग्राम में अपनी नई कंपनी को ज्वाइन कर लिया और आनन फानन में ही कंपनी से कुछ दूरी पर एक फ्लैट किराए पर ले लिया।
अगला चरण थोड़ा कठिन था, और वो था राघव के लिए अनुकूल स्कूल ढूंढना और फिर उसमे उसका दाखिला करवाना, खैर साहब, कुछ साथियों और सहकर्मियों की मदद से और कुछ खुद की मेहनत से ये कार्य भी सफल हुआ और आखिर एक नामी गिरामी स्कूल में एंट्रेंस टेस्ट देकर राघव को एक अच्छी खासी फीस और काफी अनुदान राशि देकर दाखिला हासिल हो गया।
आखिरी चरण में सुनील, शीला और राघव अपने पुराने शहर को अलविदा कह कर महानगर में आकर बस गए।
शीला और राघव के लिए महानगर के जीवन में ढलना थोड़ा मुश्किल था खास कर राघव के लिए।
उसका स्कूल गुरुग्राम के नामी स्कूलों में से एक था, जहां बड़े बड़े अफसर, व्यापारी और जमींदारों के बच्चे पढ़ते थे। क्यूंकि ये एक कॉन्वेंट स्कूल था तो सभी अध्यापक इंग्लिश में बात करते, जो ज्यादातर राघव को समझ नहीं आता। उसकी क्लास में भी ज्यादातर बच्चे बहुत अमीर या फिर हाई सोसाइटी से थे, जो जल्दी किसी से घुलते मिलते नहीं खासकर साधारण लोगों से, बेचारा राघव वैसे ही थोड़ा अंतर्मुखी और शर्मिला था और कुछ भाषा की मार, उसे समझ ही ना आता क्या करे, किस से पूछे।
घर पर भी मां ज्यादा मदद नहीं कर पाती और पिता की नई नौकरी और बड़ा ऑफिस होने की वजह से जिम्मेवारियां बढ़ गई थी, सुनील कभी कभी तो आधी रात के बाद घर लौटता और सुबह सुबह ऑफिस या टूर पर निकल जाता।
ऐसे में राघव खुद को बड़ा असहाय और बेबस महसूस करने लगा, धीरे धीरे अध्यापकों की बात न समझ आने की वजह से वो पढ़ाई में भी पिछड़ने लगा और तो और उसे स्कूल जाने के नाम से चिढ़ होने लगी।
हद तो तब हो गई जब क्लास में कोई भी उसे अपने पास बिठाने को तैयार ना होता। वैसे भी स्कूल में काफी टीचर उसको नालायक, इडियट या डंब के नाम से पुकारने लगे।
कुछ अमीरजादों ने तो उसका नाम ही ‘विलेज डंबो’ रख दिया और बकायदा उसको इस नाम से चिढ़ाना भी शुरू कर दिया।
राघव रोज सुबह बेमन से उठता, तैयार होता और स्कूल की बस पकड़ने बाहर बस स्टैंड पर आता, वहीं थोड़ी दूर पर एक पान बीड़ी की दुकान थी जहां 2/3 बड़े लड़के बैठ कर सिगरेट फूंकते चाय पीते नजर आते, राघव छुपी नजर से उनको देखता और सोचता कितनी मजे की जिंदगी है इनकी, ना पढ़ना ना लिखना बस मौज ही मौज....
आज फिर राघव का बिल्कुल मन नहीं था स्कूल जाने का पर मां पिताजी के डर से जाना ही था, वो अनमना सा बस स्टैंड की तरफ कुछ सोचता चला जा रहा था। उसका घर बस स्टैंड से कुछ 4/5 मिनट की दूरी पर था, ना जाने उसके मन में क्या चल रहा था, जब तक बस स्टैंड पर पहुंचा तो देखा बस दूर जा चुकी थी।
अब क्या करे, स्कूल जाना तो जरूरी था, अभी सोच ही रहा था कि उसके सामने एक मोटरसाइकिल आ कर खड़ी हो गई, उन्हीं लड़कों में से एक था, वो बोला, तेरी बस छूट गई ना.... चल बैठ मैं तुझे स्कूल छोड़ देता हूं।
नहीं भैय्या, आप क्यों तकलीफ करोगे, मैं ऑटो से चला जाऊंगा, राघव बोला।
ऑटो के लिए पैसे हैं तेरी जेब में, उस लड़के ने पूछा।
नहीं हैं..... तो क्या घर से ले आता हूं, राघव बोला।
अरे भाई भी बोलता है और फॉर्मेलिटी भी दिखाता है, चल बैठ मोटरसाइकिल पर....उसने बड़े अपनेपन से कहा।
राघव हिचकिचाता हुआ बैठ गया.....
रघु चलेगा, इसको स्कूल तक छोड़ कर आते हैं....उसने एक साथी को इशारा करके जोर से कहा।
उधर से एक दूसरे लड़के ने जवाब दिया... चल क्यों नहीं....इस बहाने स्कूल के दर्शन कर लेंगे, और वो कूद कर मोटरसाइकिल पर बैठ गया और मोटरसाइकिल स्कूल की तरफ दौड़ पड़ी।
करीब 2/3 किलोमीटर के बाद अचानक मोटरसाइकिल बंद हो गई...... ओह, साला लगता है पेट्रोल खतम....अब क्या करें, वो लड़का बोला।
करना क्या है, धक्का लगाओ पेट्रोल पंप तक...रघु बोला.... पर इसके स्कूल को लेट होगी ना.... क्यूं छोटू उस्ताद.....वैसे नाम क्या है तुम्हारा....रघु ने पूछा।
जी, राघव....राघव बोला।
मैं रघु और ये शशि....रघु ने परिचय दिया, तो अब क्या करें राघव, स्कूल को लेट होगी ना।
हां अब काफी लेट हो गई, स्कूल का गेट बंद हो गया होगा, राघव बोला।
तो अब, शशि बोला, क्या किया जाय, तुझे घर छोड़ दें, ऑटो से.....उसने पूछा।
ना मां और पिताजी गुस्सा करेंगे...स्कूल नहीं गया पता चलेगा तो।
तो फिर, ऐसा करते हैं, कहीं और चलते हैं, स्कूल टाइम पूरा करके घर चले जाना, घर में पता ही नहीं चलेगा, रघु बोला।
हां ये ठीक रहेगा..राघव बोला।
चलो फिर मोटरसाइकिल धकेल कर पंप पर चलें और फिर मौज मस्ती करेंगे।
इस तरह राघव शशि और रघु की दोस्ती की शुरुआत हो गई।
धीरे धीरे इस दोस्ती की जड़ें मजबूत होने लगी, राघव 10/15 दिन में एक दो बार स्कूल से अनुपस्थित हो जाता और तीनों मिल कर कभी पिक्चर, कभी पार्क तो कभी सैर सपाटा करते। अब तो राघव ने सिगरेट और बाकी नशे भी करने शुरू कर दिए थे, उसको इस नई दुनिया में बहुत मजा और रोमांच महसूस हो रहा था।
शशि और रघु दोनो ही नशे के आदी थे, और उनकी सोहबत में धीरे धीरे ये लत राघव को भी अपने मोहपाश में जकड़ने लगी।
इस सब के चलते, पढ़ाई लिखाई पर से राघव का ध्यान हटने लगा, अब तो उसे स्कूल जाना भी निरर्थक लगने लगा था। उसे धीरे धीरे नशे की लत लगनी शुरू हो गई, अब तो वो घर पर भी छुप छुप कर नशा करने लग गया था। नशा टूटते ही उसका मन बैचेन होता और नशे की तलब उसके शरीर में अजीब सी ऐंठन या अकड़न पैदा करने लगती। वो ज्यादा समय या तो सोता रहता या फिर अकेला कमरे में बंद रहता। शीला जब पूछती तो कह देता की पढ़ाई कर रहा है।
धीरे धीरे, शशि और रघु ने उसे मुफ्त नशे की गोलियां देने से इंकार करना शुरू कर दिया और राघव ने घर से रुपए चुराने भी शुरू कर दिए, क्योंकि अब उस को नशे की लत घेरने लगी थी। पहले पहल तो सुनील और शीला को पता ही न चला पर धीरे धीरे जब पैसे ज्यादा गुम होने लगे तब दोनो घर में काम करने वाली नौकरानी पर ही शक करने लगे।
एक दिन राघव ने शशि और रघु के साथ मिल कर मौज मस्ती का प्लान बनाया। स्कूल के बहाने राघव घर से निकला पर बजाय स्कूल जाने के वो लोग शशि की मोटरसाइकिल से सोहना जी झील पर जा पहुंचे। तीनो दोस्त खूब हंसी मजाक करते हुए और राघव का टिफिन खाते हुए मस्ती कर रहे थे।
रघु बोला, यारों चलो, उधर झाड़ी के पीछे थोड़ा नशा पत्ता हो जाए।
हां हां क्यूं नहीं, शशि बोला, राघव, जेब में माल है ना मुफ्त में कुछ नहीं मिलेगा। आज स्पेशल चीज है मेरे पास, एक बार में ही तारे दिखा देगा, जन्नत के मजे दिला देगा।
पर 500 रुपए लगेंगे, इसके.... उसने अंदर की जेब से एक चमकीली सी पन्नी दिखा कर कहा।
हां है ना पैसे मेरे पास, राघव मुस्कुरा के बोला, पर ये है क्या? कभी तुमने पहले नहीं दिखाया आज तक।
बेटा, इसको स्मैक कहते हैं, सब नशों का बाप है ये..... बस थोड़ा सा अन्दर और समझ ले बंदा स्वर्ग में..... शशि हवा में उसे लहराता हुआ बोला।
अचानक झाड़ी के पीछे से दो हट्टे कट्टे लोग निकल कर सामने आ गए, तभी बिजली की फुर्ती से एक इंस्पेक्टर सामने आया और बोला, बेटा स्वर्ग की सैर मैं करवाऊंगा तुम तीनों को.... और इसके पहले वो तीनों कुछ कर पाते पुलिस ने उन्हें धर दबोचा।
अगले ही पल वो तीनों एक पुलिस की जीप में लादे जा चुके थे, और जीप तेजी से गुरुग्राम पुलिस स्टेशन की तरफ दौड़ पड़ी।
राघव का डर के मारे बुरा हाल था, उसे समझ नहीं आ रहा था वो क्या करे।
पुलिस स्टेशन पहुंच कर, रघु और शशि को हवालात में बंद कर दिया गया, पर राघव को एक अलग कमरे में बैठाया गया और दरवाजा बंद कर दिया गया।
राघव अकेले में फूट फूट कर रोने लगा, उसे मां और पिताजी की याद आ रही थी, जाने वो कब तक ऐसे ही रोता रहा, फिर बहुत देर बाद उस कमरे का दरवाजा खुला तो देखा सामने इंस्पेक्टर साहब के साथ उसके पिता जी खड़े थे।
सुनील को देख कर वो भाग कर उस से लिपट गया और जोर जोर से रोते हुए कहने लगा, मुझे माफ कर दीजिए पिताजी, मुझ से गलती हो गई।
सुनील ने कस कर उसे अपने सीने से लगा लिया।
तभी इंस्पेक्टर साहब की आवाज सुनाई दी, राघव अब की बार तुमको बच्चा समझ कर छोड़ रहे हैं पर दोबारा ऐसे लोगों की संगत में नजर आए तो सीधा जेल जाओगे, समझे तुम।
जी .... जी, सर अबके बाद ऐसा कुछ नहीं होगा।
प्रोमिस करो मुझे और अपने पिता को की तुम पढ़ाई में अपना ध्यान लगाओगे, इंस्पेक्टर साहब बोले।
येस सर, मैं पक्का प्रोमिस करता हूं, राघव तुरंत बोला।
ठीक है सुनील जी, आप इसे ले जा सकते हैं।
वक्त रहते, सुनील को यदि राघव की टीचर फोन करके उसके बारे में न बताती और राघव का मित्र सुशांत (इंस्पेक्टर सुशांत) उसकी मदद करके शशि और रघु को रंगे हाथों पकड़ने का प्लान ना बनाता तो शायद राघव भी एक मुजरिम या फिर एक ड्रग एडिक्ट बन सकता था।
सुनील ने भी समझदारी दिखाते हुए बहुत सोच समझ
कर अपने बेटे को सही राह दिखाने के लिए सही कदम उठाया।
जिसकी वजह से सही समय पर राघव गलत मार्ग छोड़ कर सही रास्ते पर चल पड़ा। कुछ मनोवैज्ञानिक की सलाह और कुछ दवाओं की मदद से राघव को समय रहते नशे की लत से छुटकारा मिल गया। पर हजारों बच्चे और युवा हर साल नशे की इस अंधी दुनिया में खो जाते हैं, काश उन्हें भी कोई सुनील या प्रशांत समय रहते संभाल सके।
समाप्त
आभार – नवीन पहल – १४.०२.२०२२ 🙏🏻🙏🏻🌹🌹
# वार्षिक कहानी प्रतियोगिता हेतु
𝐆𝐞𝐞𝐭𝐚 𝐠𝐞𝐞𝐭 gт
24-Feb-2022 10:31 PM
सर! आपकी स्टोरी बहुत अच्छी है, पर आप डायलॉग्स में "ये चिन्ह" यूज़ किया करिये। और पैराग्राफ के बीच थोड़ा गेप भी दिया करिये, उससे आपकी कहानी अच्छी होने के साथ उसकी प्रस्तुति भी अच्छी हो जायेगी।
Reply
Seema Priyadarshini sahay
19-Feb-2022 12:05 AM
बहुत बढ़िया रचना
Reply